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Inquilaab

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इंक़लाब  दिल तोड़ के सब छोड़ के,                              बैठ न खुद को रोक के, अब होने को पूरे ख़्वाब हैं, तेरे सामने इंक़लाब है। ताकत को अपनी भांप ले, कमजोरियां सब ढांप ले, मिलने को सब जवाब हैं, तेरे सामने इंक़लाब है। आज रुक अगर तू जाएगा, नज़रें खुद से कैसे मिलाएगा, जलने को अब तो आब है, तेरे सामने इंक़लाब है। आज हैं अकेले हम नहीं, मिट जाएं तो भी ग़म नहीं, बड़ने में ही अब सवाब है, तेरे सामने इंक़लाब है। सूचना: ये तस्वीर इंटरनेट से ली गई है।