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Tujhe Na Sochun To Kya Karoon.......

तुझे न सोचूं तो क्या करूं ...... तुझे न सोचूं तो क्या करूं, वक़्त के इस खालीपन को कैसे भरूं। सरगम अगर बनाऊं,लफ़्ज़ों से उसे सजाऊं, गीत जो बनता है उसमे तुझे ही गुनगुनाऊँ, फिर उसे न गाऊँ,तो क्या करूं ....... तुझे न सोचूं तो क्या करूं, वक़्त के इस खालीपन को कैसे भरूं। कोरे से कागज़ पे कुछ मिटाऊं,बनाऊं, रंगों में उसे भरूं ,भिगाऊं, तेरा चेहरा ह़ी बन जाता है। रंग फिर न भरूं,तो क्या करूं ....... तुझे न सोचूं तो क्या करूं, वक़्त के इस खालीपन को कैसे भरूं। फूलों को धागों में पिरा,एक माला का रूप दिया, वो तेरी तरह महके तो खुद को कैसे समझाऊं,  उस खुशबू से खुद को कैसे अलग करूं ..... तुझे न सोचूं तो क्या करूं, वक़्त के इस खालीपन को कैसे भरूं। जान अपनी छोड़ कर,याद तेरी छुट जाएगी, गले में फन्दा डाल लिया,सोचा मर जाऊं, पर साथ मेरे तू भी तो है,जान तेरी कैसे लेलूं ....... तुझे न सोचूं तो क्या करूं, वक़्त के इस खालीपन को कैसे भरूं।

Tere Saaye Ko To Chahne De

तेरे साय को तो चाहने दे। तेरे साय को तो चाहने दे, उसको तो मुझसे दूर न कर,मुझे पाने दे, तेरे साय को तो चाहने दे। पानी सा शीतल है वो तो, बादल सा कोमल है वो तो, इस दुनिया के बहकावे में उसको ना आने दे, तेरे साय को तो चाहने दे। कुछ देर वही तो रूककर,वक़्त मुझे दे देता है, मुझको वही तो छूकर एहसास तेरा दे देता है, डर कर संगदिल दुनिया से क्यूँ कहीं और उसे जाने दे, तेरे साय को तो चाहने दे। मेरी तरह वो भी शर्मीला सा लगता है, देख कर मुझको वो भी इधर-उधर छुप जाता है, ये ही अदा तो कातिल है,यूं ही उसे शर्माने दे, तेरे साय को तो चाहने दे।उसको तो मुझसे दूर न कर,मुझे पाने दे। ना हस्ता है ना रोता है,चुप चाप है मेरी ही तरह, दर्द अब वो सहता है,सहता था मै जिस तरह, आँखें कभी-कभी नम मगर करलेता है, कर लेने दे। तेरे साय को तो चाहने दे।