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HAALAT-E-CIFAR

हालत-ऐ-'सिफर' बिखरे-बिखरे से ख्यालात हैं,         उलझे-उलझे से सवालात हैं, इस कदर सोच में डूबें हैं 'सिफर'        सोच क्या थी न मालूमात है। उलटी-पुलटी सी मंज़िलात हैं,        हैं राहे जिनसे न ताल्लुकात है, ऐसे रास्तों पर निकल पड़े हैं 'सिफर',       जिसके ख़त्म होने के न हसरात हैं। बहके-बहके से असरात हैं,               टूटे-टूटे से इरादात हैं, दूर इतने न चले जाना 'सिफर',       के आने के फिर बने न हालात है।