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Woh Subah

वो सुबाह। अपने आँचल की हवा से मुझे सहलाती थी, सुर्ख लाली मेरे गालों बे वो बिखराती थी, उसके आने से मेरी नींद ही उड़ जाती थी, वो बड़े प्यार से आकार मुझे जगाती थी। ये बुरी नज़र थी किसी की या मेरा मुकद्दर, की हर ख़ुशी से बिछड़ना ही है मुयस्सर, उस सिया के आँचल ने मुझे ढांप लिया, उसके आगोश में खोया ये मैंने पाप किया, उसकी बाँहों में फिर मै जकड़ता ही गया, उस बेचारी से मै और बिछड़ता ही गया, ये इस कदर नशे में मुझे कर जाती थी, के उसके आँचल की हवा भी जगा न पाती थी, वो हार को मेरी देती थी हरा, इसने बस हार से मेरा दामन है भरा, वो सबको लाती थी मेरे पास, इसने मुझको बनाया है अपना ख़ास, ये जिद है,तू मेरी चाहत थी, मेरे बचपन की तू ही तो मोहब्बत थी, मै तेरे साथ पड़ा और खेला हूँ, आज तेरे बिना अकेला हूँ। तुझसे एक बार मिल तो जाऊं कभी, जितने शिकवे हैं मिटा दूंगा सभी। मै मजबूर हूँ,लाचार हूँ,मुझको ले बचा, बिन तेरे जीना है मेरी भी सज़ा, ये मिटा कर मुझे दूर से मुस्काएगी, तू बचा ले मुझे मेरी जान निकल जाएगी।

Bachpan Kahin Pe Kho Gaya

बचपन कहीं पे खो गया। बचपन कहीं पे खो गया, मासूमियत का हिस्सा उसमें से अलग हो गया। ताज़ी हवा को देख कर किलकारियां आती नहीं, नन्हे से क़दमों की आहट घर से कहीं जाती नहीं, टी . वी . में खोकर कुछ याद नहीं रहता, अब विडियो गेम ही बस संग है रहता, कीपैड पर छोटे से हाथों का वोह स्पर्श बह गया, बचपन कहीं पे खो गया, मासूमियत का हिस्सा उसमें से अलग हो गया। दोस्तों के साथ रोटी आधी बाटना, गलतियों पर आपस में लड़ना-डाँटना, बाटना बस फेसबुक की शेरिंग तक रह गया, मासूमियत का हिस्सा उसमें से अलग हो गया। बचपन कहीं पे खो गया। बारिशों में बेधड़क मस्ती में सबका झूमना, एक दूसरे के पीछे गलियों में दिनभर घूमना, गेंद,बल्ले,खो-खो,कबड्डी,का मंज़र आँखों से ओझल हो गया, मासूमियत का हिस्सा उसमें से अलग हो गया। बचपन कहीं पे खो गया।