Posts

Showing posts with the label facebook

Bachpan Kahin Pe Kho Gaya

बचपन कहीं पे खो गया। बचपन कहीं पे खो गया, मासूमियत का हिस्सा उसमें से अलग हो गया। ताज़ी हवा को देख कर किलकारियां आती नहीं, नन्हे से क़दमों की आहट घर से कहीं जाती नहीं, टी . वी . में खोकर कुछ याद नहीं रहता, अब विडियो गेम ही बस संग है रहता, कीपैड पर छोटे से हाथों का वोह स्पर्श बह गया, बचपन कहीं पे खो गया, मासूमियत का हिस्सा उसमें से अलग हो गया। दोस्तों के साथ रोटी आधी बाटना, गलतियों पर आपस में लड़ना-डाँटना, बाटना बस फेसबुक की शेरिंग तक रह गया, मासूमियत का हिस्सा उसमें से अलग हो गया। बचपन कहीं पे खो गया। बारिशों में बेधड़क मस्ती में सबका झूमना, एक दूसरे के पीछे गलियों में दिनभर घूमना, गेंद,बल्ले,खो-खो,कबड्डी,का मंज़र आँखों से ओझल हो गया, मासूमियत का हिस्सा उसमें से अलग हो गया। बचपन कहीं पे खो गया।