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Woh Subah

वो सुबाह। अपने आँचल की हवा से मुझे सहलाती थी, सुर्ख लाली मेरे गालों बे वो बिखराती थी, उसके आने से मेरी नींद ही उड़ जाती थी, वो बड़े प्यार से आकार मुझे जगाती थी। ये बुरी नज़र थी किसी की या मेरा मुकद्दर, की हर ख़ुशी से बिछड़ना ही है मुयस्सर, उस सिया के आँचल ने मुझे ढांप लिया, उसके आगोश में खोया ये मैंने पाप किया, उसकी बाँहों में फिर मै जकड़ता ही गया, उस बेचारी से मै और बिछड़ता ही गया, ये इस कदर नशे में मुझे कर जाती थी, के उसके आँचल की हवा भी जगा न पाती थी, वो हार को मेरी देती थी हरा, इसने बस हार से मेरा दामन है भरा, वो सबको लाती थी मेरे पास, इसने मुझको बनाया है अपना ख़ास, ये जिद है,तू मेरी चाहत थी, मेरे बचपन की तू ही तो मोहब्बत थी, मै तेरे साथ पड़ा और खेला हूँ, आज तेरे बिना अकेला हूँ। तुझसे एक बार मिल तो जाऊं कभी, जितने शिकवे हैं मिटा दूंगा सभी। मै मजबूर हूँ,लाचार हूँ,मुझको ले बचा, बिन तेरे जीना है मेरी भी सज़ा, ये मिटा कर मुझे दूर से मुस्काएगी, तू बचा ले मुझे मेरी जान निकल जाएगी।