Dhire-Dhire(Gradually)
धीरे-धीरे (Gradually)- A tribute to Malala Yusufzai. 10 नवंबर को संयुक्त राष्ट्र ने मलाला युसुफजई दिन घोषित किया है।उसके संघर्ष को समर्पित है ये कविता। 10 NOV. is announced as a Malala Yususfzai day by U.N. This poem is dedicated to her struggle. from: southwerk.wordpress.com धीरे-धीरे सपनो को अब बड़ने दो, हौले-हौले उम्मीदों को अब उड़ने दो, सहमे-सहमे रहकर अब तक जिए, अब आगे आकर कुछ कहने दो। Let's dreams grow gradually, let's expectations fly slowly, we have lived a life of fear until now, Let us come forward and say something fearlessly. ऐसे जागे हैं अब न सोएंगे, यूँ ही घुट-घुट कर अब न रोएंगे, बड़ी-बड़ी बंदूकों का अब डर नहीं, उन्हें हम पर अब चाहे ख़ाली होने दो, धीरे-धीरे .................................... We are awake now,not to sleep, why to hide and slowly weep, we are not afraid of big guns, let them empty on us hurriedly. let's................................ एक-एक कर के हैं अब एक बने, अपने इरादों पर हैं आज ठने