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Showing posts from October, 2012

Bachcha Ban Jaaun!(Became a child Again!)

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यह कविता सुहाना मौसम देख कर दुबारा बचपन में लौटने की कामना की है। This poem is about revisiting childhood after watching pleasant weather.                                      बच्चा बन जाऊं!(became a child again!) चलती है शीतल पवन, आज हुआ फिर चंचल मन। When cold breeze blew away, my heart goes fickle today, मै फिर से एक बच्चा बन जाऊं, ज़िद करूँ,मचलूं,घर से बाहर आऊं। To become a child again, be stubborn,get excited and come in rain, ठंडी-ठंडी जल की बूँदें, ना मेरी आज आँखें मूंदें, Today these small water drops, not let my eyes close, I hopes, लकड़ी के छोटे ढेरों को अग्नि से सुलगाऊँ, ह्रदय अगन में न तपूँ,सुघंदित दीप जलाऊं, And burn the small wooden heaps with fire, don't let my heart burn,instead candles with fragrant attire, झोंका हो जिस ओर, हो लूं मै उस छोर, Towards where the wind bend, I too reach that end,  मित्रों को सब ...

Patta Patta Buta Buta(All Leaves And Plants) By Mir

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पत्ता पत्ता बूटा बूटा- मीर तकी मीर  पत्ता-पत्ता बूटा-बूटा हाल हमारा जाने है, जाने न जाने गुल ही न जाने,बाग़ तो सारा जाने है। Each leaf and each plant knows my condition(plight) only rose alone does not know what all the garden knows. लगने न दे बस हो तो उसके गौहर-ए-गोश के बाले तक, उस को फ़लक चश्म-ए-मै-ओ-ख़ोर की तितली का तारा जाने है। What known to even her earrings,her ears are unaware off even this is known to the pupil of her moon like eyes.(but not to her) आगे उस मुतक़ब्बर के हम ख़ुदा-ख़ुदा किया करते हैं, कब मौजूद ख़ुदा को वो मग़रूर ख़ुद-आरा जाने है। I do enchant to let god be god in front of that arrogant girl, but she is so proud in self praise that she ignored HIM. आशिक़ सा तो सादा कोई और न होगा दुनिया में, जी के ज़िआँ को इश्क़ में उस के अपना वारा जाने है। No one is as simple as a lover in this world, who sacrifices his life to be in her love forever. चारागरी बीमारी-ए-दिल की रस्म-ए-शहर-ए-हुस्न नहीं, वर्ना दिलबर-ए-नादाँ भी इस दर्द का ...

Hazaaron Khwahishen Aisi-By Ghalib

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हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी - ग़ालिब  हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी के हर ख्वाहिश पे दम निकले, बहुत निकले मेरे अरमां, मगर फिर भी कम निकले, Thousands of desire, each worth dying for.. many of them i have realized,yet i yearn for more. डरे क्यूँ मेरा कातिल?क्या रहेगा उसकी गर्दन पर? वो खूं जो,चश्में तर से उम्र भर यूँ दम-बा-दम निकले, Why should my killer(lover) be afraid? No one will hold her responsible for the blood which continuously flow through my eyes all my life. निकलना खुल्द से आदम का सुनते आये हैं लेकिन, बहुत बे आबरू हो कर तेरे कूंचे से हम निकले, We have heard about the dismissal of Adam from Heaven, with a more humiliation, I am leaving the street in which you live.. भरम खुल जाए ज़ालिम!तेरी कामत की दराज़ी का, अगर इस तराह पर पेचो ख़म का पेचो ख़म निकले, Oh tyrant,your true personality will be known to all, if the curls of my hair slip through my turban! मगर लिखवाए कोई उसको ख़त, तो हमसे लिखवाए, हुई सुबहा,और घर से कां पर रख कर कलम निकले, ...

Tum To Nahin Thi?

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तुम तो नहीं थीं? मेरी शायरी कहीं तुम तो नहीं थी? के अब तेरे जाने के बाद, लिख नहीं पाते हैं हाथ, काफिले मिलते ही नहीं, लफ्ज़ आएं नज़र न सही, मेरी शायरी कहीं तुम तो नहीं थी? मेरी आशिकी कहीं तुम तो नहीं थी? के अब तेरे बिना,न कटे दिन और रात, भाए मुझे न अब किसी और का साथ, अब लगती नहीं,न भूख न प्यास, राह में आँखें बिछें,लेके तेरे आने की आस, मेरी आशिकी कहीं तुम तो नहीं थी? मेरी दिल्लगी कहीं तुम तो नहीं थी? चुपचाप सा रहूँ अब तेरे बगैर, दोस्त रिश्तेदार लगने लगे हैं गैर, कहीं खो सी गई है अब मेरी हसी, मेरी धडकनों में तू ही तू बसी, मेरी दिल्लगी कहीं तुम तो नहीं थी? मेरी किस्मत कहीं तुम तो नहीं थीं? के अब टूटे-टूटे हैं सारे ख्वाब, आसमां से भी मिलता नहीं जवाब, हर ख़ुशी को तरसता हूँ, तनहाइयों में सिसकता'हूँ, मेरी किस्मत कहीं तुम तो नहीं थीं? मेरी ज़िन्दगी कहीं तुम तो नहीं थीं, के रुक-रुक के आती है अब सांस, मिटती जो नहीं तुझसे मिलने की आस, अब इसके सिवा नहीं कोई आरज़ू मेरी, तेरी बाँहों में ही निकले जान ये मेरी, मेरी ज़िन्दगी ...

Ye Hai Mera Hindustan Mere Sapno Ka Jahaan

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ये है मेरा हिंदुस्तान मेरे सपनो का जहान।-ज़ुबैर रिज़वी  ये है मेरा हिंदुस्तान मेरे सपनो का जहान इससे प्यार मुझको। हस्ता-गाता जीवन इसका धूम मचाते मौसम, हस्ता-गाता जीवन इसका धूम मचाते मौसम, गंगा-जमना की लहरों में सात सुरों के सरगम, ताज के नूराधर से सुंदर तस्वीरों के मंज़र, ये है मेरा हिंदुस्तान मेरे सपनो का जहान इससे प्यार मुझको। दिन अलबेले,रातें इसकी मस्ती की सौदागर, दिन अलबेले,रातें इसकी मस्ती की सौदागर धरती जैसे टूट रही हो दूध की कच्ची गागर, ऊँचे-ऊँचे पर्वत इसके,नीले-नीले सागर, ये है मेरा हिंदुस्तान मेरे सपनो का जहान इससे प्यार मुझको। बादल झूमे,बरखा बरसे,पवन झकोले खाए, बादल झूमे,बरखा बरसे,पवन झकोले खाए, धरती के फैले आगन में यूं खेती लहराए .. जैसे बच्चा माँ की गोद में रह-रह के मुस्काए .... ये है मेरा हिंदुस्तान मेरे सपनो का जहान इससे प्यार मुझको। राधा,सीता,चंदर गाये,गाये इंदुबाल, राधा,सीता,चंदर गाये,गाये इंदुबाल, नैनो में काजल के डोरे,सुर्ख गुलाबी गाल, जुल्फों की वो छायां जैसे शिमला-नैनीताल, ये है मेरा हिंदुस्तान मेरे सपनो का जहान...

Tujhe Na Sochun To Kya Karoon.......

तुझे न सोचूं तो क्या करूं ...... तुझे न सोचूं तो क्या करूं, वक़्त के इस खालीपन को कैसे भरूं। सरगम अगर बनाऊं,लफ़्ज़ों से उसे सजाऊं, गीत जो बनता है उसमे तुझे ही गुनगुनाऊँ, फिर उसे न गाऊँ,तो क्या करूं ....... तुझे न सोचूं तो क्या करूं, वक़्त के इस खालीपन को कैसे भरूं। कोरे से कागज़ पे कुछ मिटाऊं,बनाऊं, रंगों में उसे भरूं ,भिगाऊं, तेरा चेहरा ह़ी बन जाता है। रंग फिर न भरूं,तो क्या करूं ....... तुझे न सोचूं तो क्या करूं, वक़्त के इस खालीपन को कैसे भरूं। फूलों को धागों में पिरा,एक माला का रूप दिया, वो तेरी तरह महके तो खुद को कैसे समझाऊं,  उस खुशबू से खुद को कैसे अलग करूं ..... तुझे न सोचूं तो क्या करूं, वक़्त के इस खालीपन को कैसे भरूं। जान अपनी छोड़ कर,याद तेरी छुट जाएगी, गले में फन्दा डाल लिया,सोचा मर जाऊं, पर साथ मेरे तू भी तो है,जान तेरी कैसे लेलूं ....... तुझे न सोचूं तो क्या करूं, वक़्त के इस खालीपन को कैसे भरूं।

Aik Aleef - Bulle Shah( with hindi translation)

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एक अलिफ़ - बुल्ले शाह  इलमन बस करियो यार  एको अलिफ़ तेरे दरकार  चाहे जितना ज्ञान लो मेरे यार, एक शब्द करे तेरा बेड़ा पार, इल्म न आवे विच शुमार  जांदी उम्र, नहीं ऐतबार  इलमन बस करियो यार  एको अलिफ़ तेरे दरकार  ज्ञान न मिले चाहे पड़ो बार-बार, कब तक जियोगे नहीं ऐतबार, चाहे जितना ज्ञान लो मेरे यार, एक शब्द करे तेरा बेड़ा पार। इलमन बस करियो यार  चाहे जितना ज्ञान लो मेरे यार पढ़-पढ़,लिख-लिख लांदे ढेर, ढेर किताबें,चार छो फेर करदे छनन विच उन्हेर  पेछो:"रह?"ते खबर न सतर  पढ़-पढ़ किताबें ढेर लगाया  कुरान,हदीस सब पढ़ आया  रोशनी में भी पर अँधेरा पाया फिर भी उसको समझ न पाया  इलमन बस करियो यार  चाहे जितना ज्ञान लो मेरे यार पढ़-पढ़ शेख़ मशेख खावें उलटे मसले घरों बता दें  बे इल्मान नू लुट लुट खावें  झूटे-सच्चे करें इकरार  पढ़ कर मौलाना,शागिर्द बन जाओ  सबको गलत तरीके बताओ  न समझो से तुम पैसा ख...

HEARTFELT: तेरी ख़ुदाई

HEARTFELT: तेरी ख़ुदाई

HAALAT-E-CIFAR

हालत-ऐ-'सिफर' बिखरे-बिखरे से ख्यालात हैं,         उलझे-उलझे से सवालात हैं, इस कदर सोच में डूबें हैं 'सिफर'        सोच क्या थी न मालूमात है। उलटी-पुलटी सी मंज़िलात हैं,        हैं राहे जिनसे न ताल्लुकात है, ऐसे रास्तों पर निकल पड़े हैं 'सिफर',       जिसके ख़त्म होने के न हसरात हैं। बहके-बहके से असरात हैं,               टूटे-टूटे से इरादात हैं, दूर इतने न चले जाना 'सिफर',       के आने के फिर बने न हालात है।

Mehve Khayal(lost in thoughts)

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महवे ख्याल।(ख्यालों में खोये हुए) महवे खयाल यार हूँ,लज्ज़ते कश अज़ार हूँ। मुझको सजा यूँ मिली इश्क में बेकरार  हूँ। कैसी मै नाबकार हूँ,                                                                                गरचे जवां मै हज़ार हूँ,                                                                         लज्ज़ते कश अज़ार हूँ,                                                                         ...

Phate Panne

फटे पन्ने। उस दिन कुछ फटे पन्ने मिले। उस दिन कुछ फटे पन्ने मिले, तो फिर लगा तुम मिल गए। उनमें तुमने लिखी कुछ बातें थीं, उनमें तुम्हारी यादें थीं, थे जज़्बात सारे हिल गए, तो फिर लगा तुम मिल गए। खुशबू से घर महक गया, पगला ये मन था चहक गया, जब पन्नो को बैठी जोड़ने, सब दर्द लगे थे छोड़ने, चंद फूल दिल में खिल गए, तो फिर लगा तुम मिल गए। उस दिन .......................... हर लव्ज़ था कुछ बोलता, वो प्यार फिर से घोलता, पल भर को दिल ने मान लिया, जैसे तुने फिर थाम लिया, सुर थे धडकनों में घुल गए, तो फिर लगा तुम मिल गए। उस दिन कुछ ................... उसमे लिखा वो फरमान था, जब मुझसे हुआ तू अनजान था, कितने थे मुझे शिकवे-गिले, पर तुम मुझे फिर न मिले, मुझसे अलग तुम सपने बुन गए, तो फिर क्यूँ  लगा तुम मिल गए। उस दिन कुछ फटे पन्ने मिले, तो फिर लगा तुम मिल गए।

Chilman Padi Ho Lakh Sarakti Zaroor Hai.

चिलमन पड़ी हो लाख सरकती ज़रूर है। चिलमन पड़ी हो लाख सरकती ज़रूर है, आशिक पे एक निगाह तो पड़ती ज़रूर है। तुम लाख एहतियात से रखो शबाब को, ये वो शराब है जो छलकती ज़रूर है। सहमी हुई हैं आज नशेमन की बत्तियाँ, बिजली कहीं करीब चमकती ज़रूर है। ज़ेरे नकाब रहके भी छुपता नहीं शबाब, खिलति है जब कली तो महकती ज़रूर है। मंजिल की जुस्तजू में जवानी की ख़ैर हो, दीवानी रास्तों पे भटकती ज़रूर है। सब जानते हैं इसमें कोई फायदा नहीं, दुनिया हसीन श़क्ल को तकती ज़रूर है। कंगन हों चूड़ियाँ हों मगर आधी रात को, कोई न कोई चीज़ खनकती ज़रूर है। 'कैसर' शराब छोड़े ज़माना गुज़र गया, फिर आज मेरी तौबा बहकती ज़रूर है। नोट:ये ग़ज़ल भी मुझे उसी पुरानी डायरी में मिली थी जिसमें "अनवर " द्वारा लिखी ग़ज़ल मिली थी। इसकी आखरी दो लाइन में किसी" कैसर" का ज़िक्र आता है जिनके बारे में भी में कोई जानकारी नहीं जुटा सका,किसी को कुछ मालूमात हो तो ज़रूर जानकारी दें। 

Kaisi Jagah Hai

कैसी जगह है। बड़ी विचित्र जगह है यह, कुछ समझ आता नहीं, क्या करूँ क्या न करूँ , कुछ भी तो है भाता नहीं, कोई कहीं से आ गया, कोई कहाँ गया यहाँ, उलझे हुए हैं सभी, सुलझा कोई पाता नहीं, इस तरह खड़े हैं सब, हशर का जैसे मैदान हो, फैसला करवा के भी, बची न उनकी जान हो, है तड़प इतनी सी बस, मै भी हूँ शामिल भीड़ में, कर गुज़रने थे जिसे, पार नदिया और पहाड़ थे, रास्ता दिखलादूं अगर, कोई भटका जो मिले मुझे, मंज़िल मिलेगी मुझे भी, फिर ये रहे चीर के।

Woh

वो  किसी ने कहा ना किसी ने सुना है, एक आवाज़ मगर आती तो है। होले से छुकर,वो गालों को मेरे, यहीं-कहीं से जाती तो है। अंधेरों को मेरे मिटाने वो शब में, चिरागों को आकर जलाती तो है। दिखती नही है न आते न जाते, एहसास मगर अपना कराती तो है। बुलाऊ कभी तो वो आती नहीं है, तनहाइयाँ मगर, मिटाती तो है। चिलमन में चेहरा छुपाए है बैठी, ख्वाबों में मगर सताती तो है। उसे कभी देखा तो नहीं है, एक सूरत दिल में नज़र मगर आती तो है।

Hale Gham Apna Bhala Kisko Sunaya Jaaye.

हाले ग़म अपना भला किसको सुनाया जाए। हाले ग़म अपना भला किसको सुनाया जाए,  कौन दुश्मन है यहाँ किसको रुलाया जाए , आये मय्यत पे तो इस तरह से फरमाने लगे, रूठने वाले को किस तरह मनाया जाए। हर्मोदहर का यूँ झगड़ा मिटाया जाए , बीच में दोनों के मैखाना बनाया जाए। क्यूंकि इसी हिंदुस्तान में एक धनवान रहता था, ना हिन्दू था,ना मुस्लिम था,फ़क़त इंसान रहता था, ये दिल में सोचा उसने ऐसा कोई काम कर जाएँ, जहाँ करने वाले करें तारीफ ऐसा नाम कर जाएँ। करें वो काम के हिन्दू-मुसल्मा एक हो जाएं, जो हैं भटके हुए रस्ते वो सब नेक हो जाएं, जहाँ हिन्दू करे पूजा,जहाँ मुस्लिम करे सजदा, दिखाएँ एक जगह पे रहीमो-राम का जलवा। ये दिल में सोच कर बनवाया आलिशान एक मंदिर, हुई तामीर तो एलान उसने कर दिया घर-घर, के हिन्दू भी यहाँ आएं,मुसल्मा भी यहाँ आएं, कोई सजदा करे आकर कोई माला चड़ा जाए, मगर कुछ रोज़ बाद आया तो देखा उस जगह मंज़र, के मंदिर के सहन में चंद हिन्दू बैठे थे मिलकर, बुला कर एक पुजारी से ये मंज़र देख कर पूछा, मुसल्मा क्यूँ नहीं आते हैं करने इस जगह सजदा? पु...

Tere Saaye Ko To Chahne De

तेरे साय को तो चाहने दे। तेरे साय को तो चाहने दे, उसको तो मुझसे दूर न कर,मुझे पाने दे, तेरे साय को तो चाहने दे। पानी सा शीतल है वो तो, बादल सा कोमल है वो तो, इस दुनिया के बहकावे में उसको ना आने दे, तेरे साय को तो चाहने दे। कुछ देर वही तो रूककर,वक़्त मुझे दे देता है, मुझको वही तो छूकर एहसास तेरा दे देता है, डर कर संगदिल दुनिया से क्यूँ कहीं और उसे जाने दे, तेरे साय को तो चाहने दे। मेरी तरह वो भी शर्मीला सा लगता है, देख कर मुझको वो भी इधर-उधर छुप जाता है, ये ही अदा तो कातिल है,यूं ही उसे शर्माने दे, तेरे साय को तो चाहने दे।उसको तो मुझसे दूर न कर,मुझे पाने दे। ना हस्ता है ना रोता है,चुप चाप है मेरी ही तरह, दर्द अब वो सहता है,सहता था मै जिस तरह, आँखें कभी-कभी नम मगर करलेता है, कर लेने दे। तेरे साय को तो चाहने दे।

Inquilaab

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इंक़लाब  दिल तोड़ के सब छोड़ के,                              बैठ न खुद को रोक के, अब होने को पूरे ख़्वाब हैं, तेरे सामने इंक़लाब है। ताकत को अपनी भांप ले, कमजोरियां सब ढांप ले, मिलने को सब जवाब हैं, तेरे सामने इंक़लाब है। आज रुक अगर तू जाएगा, नज़रें खुद से कैसे मिलाएगा, जलने को अब तो आब है, तेरे सामने इंक़लाब है। आज हैं अकेले हम नहीं, मिट जाएं तो भी ग़म नहीं, बड़ने में ही अब सवाब है, तेरे सामने इंक़लाब है। सूचना: ये तस्वीर इंटरनेट से ली गई है।

Mein Wahin Pe Rah Gaya

मै वहीँ पे रह गया। ज़िन्दगी बढती गई,मै वहीँ  पे रह गया, मै चल भी न सका और समय बह गया। न मेरी राहें कोई,न मंजिल है कोई, धुल फिर भी उड़ती गई,जिसमें मै खो गया। ज़िन्दगी बढती गई,मै वहीँ  पे रह गया। धुप से छाओं से क्या मेरा वास्ता, में बस सुनाता रहा भूली सी दास्तां, किस्से बनते रहे,मै मगर सो गया, मै चल भी न सका और समय बह गया। दर्द से जुड़ गया जो एक रिश्ता नया, छोड़ वो भी गया जब हद से ज़्यादा बड़ गया, सरगमों में मै ही दर्द को चुनता गया, मै चल भी न सका और समय बह गया। ज़िन्दगी बढती गई,मै वहीँ  पे रह गया। "आगे बढता रहूँ",जो करूँ में ये दुआ, जो हुआ ना भूल तू है यही मेरा फलसफा, खुद से लड़ता हुआ मै ही मिटता गया, मै चल भी न सका और समय बह गया। ज़िन्दगी बढती गई,मै वहीँ  पे रह गया। तन्हाई कहे अब तू मुझे छोड़ जा,  तोड़ दे जो बरसों का है नाता ही ये बन गया,  रो पडूँगी मै अगर मुझसा ही तू हो गया, मै चल भी न सका और समय बह गया। ज़िन्दगी बढती गई,मै वहीँ  पे रह गया।

Tere Diwane

तेरे दीवाने  आज हर गली में, हर मोड़ पर मैख़ाने हैं, अब इस शहर में बढ रहे तेरे दीवाने हैं। थोड़ा परदे का एहतराम करो, इस तरह क़त्ल न सरे आम करो, बे वजह बन रहे जो ये अफसाने हैं, अब इस शहर में बढ रहे तेरे दीवाने हैं। छज्जे पर जुल्फें जो न सुल्झाओगे, हजारों को किसी काम पर लगाओगे, इतने जो टूट रहे अब घराने हैं, अब इस शहर में बढ रहे तेरे दीवाने हैं। ये सुर्ख होंट जब नज़र आ जाते हैं, भंवरे भी बहकने लग जाते हैं, फूलों की जो लगने लगी दुकाने हैं, अब इस शहर में बढ रहे तेरे दीवाने हैं। जो आँखों से तेरी हैं मदहोश हुए, उन्हें साकी जो न रोके तो हैं बेहोश हुए, ख़ाली नहीं हो रहे अब जो पैमाने हैं,  इस शहर में बढ रहे तेरे दीवाने हैं। अब अपने दीवानों पे करदो ये रहम, के किसी एक को बनालो तुम सनम, तड़प-तड़प के जो रोज़ मर रहें हैं, एक बार ही बस सहलेंगे सितम। छोड़ दो फुर्सत में जो तुम्हे अब जाल फेलाने हैं, अब इस शहर में बढ रहे तेरे दीवाने हैं।

Swarg or Nark

स्वर्ग और नरक  वो कहते हैं वफ़ा की है मैंने इस ज़माने में, कमी आने न दी माँ -बाप के पैरों को दबाने में, सुबह और शाम को भगवान् को में याद करता था, कहीं,कभी भी किसी से भी मै न लड़ता था। सच बोला सदा ईमान पर रहा अटल, जो भटका भी कभी तो मै गया संभल, बच्चों को है पाला,बनाया है बड़ा काबिल, मेरे अच्छे कर्मों में उनको भी किया शामिल, दान ,धर्मों के कामों से बड़ा पुन्य कमाया है, बड़े सुख चैन से ही आखरी वक़्त आया है, सोचता हूँ मिलेगा क्या? स्वर्ग या नरक! दोनों में भला करूँगा कैसे मै फर्क, कई पंडित बुलवाए,बड़े कई शास्त्र मंगवाए, मगर उत्तर बड़ा मुश्किल खुदबखुद ही समझ पाए। स्वर्ग और नरक है अपने ही कर्मों ने बनाया, सुख चैन से जीवन जिया तो क्या जन्नत को पाया, तेरी एक बात से ख़ुशी गर किसी को मिल जाए, कोई हरकत भी तेरी दिल किसी का न दुखाए, तेरे पैसे से भला दो-चार भी उठालें, तेरे कारन कभी गिरते कोई खुद को संभालें, तो ये मान लेना मिट गए सारे फर्क, जो किसी का नरक तेरे से बनजाएगा स्वर्ग, अब अपनी जन्नत से किसी की दुनिया सजाऊंगा, ...

Woh Subah

वो सुबाह। अपने आँचल की हवा से मुझे सहलाती थी, सुर्ख लाली मेरे गालों बे वो बिखराती थी, उसके आने से मेरी नींद ही उड़ जाती थी, वो बड़े प्यार से आकार मुझे जगाती थी। ये बुरी नज़र थी किसी की या मेरा मुकद्दर, की हर ख़ुशी से बिछड़ना ही है मुयस्सर, उस सिया के आँचल ने मुझे ढांप लिया, उसके आगोश में खोया ये मैंने पाप किया, उसकी बाँहों में फिर मै जकड़ता ही गया, उस बेचारी से मै और बिछड़ता ही गया, ये इस कदर नशे में मुझे कर जाती थी, के उसके आँचल की हवा भी जगा न पाती थी, वो हार को मेरी देती थी हरा, इसने बस हार से मेरा दामन है भरा, वो सबको लाती थी मेरे पास, इसने मुझको बनाया है अपना ख़ास, ये जिद है,तू मेरी चाहत थी, मेरे बचपन की तू ही तो मोहब्बत थी, मै तेरे साथ पड़ा और खेला हूँ, आज तेरे बिना अकेला हूँ। तुझसे एक बार मिल तो जाऊं कभी, जितने शिकवे हैं मिटा दूंगा सभी। मै मजबूर हूँ,लाचार हूँ,मुझको ले बचा, बिन तेरे जीना है मेरी भी सज़ा, ये मिटा कर मुझे दूर से मुस्काएगी, तू बचा ले मुझे मेरी जान निकल जाएगी।

Bachpan Kahin Pe Kho Gaya

बचपन कहीं पे खो गया। बचपन कहीं पे खो गया, मासूमियत का हिस्सा उसमें से अलग हो गया। ताज़ी हवा को देख कर किलकारियां आती नहीं, नन्हे से क़दमों की आहट घर से कहीं जाती नहीं, टी . वी . में खोकर कुछ याद नहीं रहता, अब विडियो गेम ही बस संग है रहता, कीपैड पर छोटे से हाथों का वोह स्पर्श बह गया, बचपन कहीं पे खो गया, मासूमियत का हिस्सा उसमें से अलग हो गया। दोस्तों के साथ रोटी आधी बाटना, गलतियों पर आपस में लड़ना-डाँटना, बाटना बस फेसबुक की शेरिंग तक रह गया, मासूमियत का हिस्सा उसमें से अलग हो गया। बचपन कहीं पे खो गया। बारिशों में बेधड़क मस्ती में सबका झूमना, एक दूसरे के पीछे गलियों में दिनभर घूमना, गेंद,बल्ले,खो-खो,कबड्डी,का मंज़र आँखों से ओझल हो गया, मासूमियत का हिस्सा उसमें से अलग हो गया। बचपन कहीं पे खो गया।