Swarg or Nark
स्वर्ग और नरक
वो कहते हैं वफ़ा की है मैंने इस ज़माने में,
कमी आने न दी माँ -बाप के पैरों को दबाने में,
सुबह और शाम को भगवान् को में याद करता था,
कहीं,कभी भी किसी से भी मै न लड़ता था।
सच बोला सदा ईमान पर रहा अटल,
जो भटका भी कभी तो मै गया संभल,
बच्चों को है पाला,बनाया है बड़ा काबिल,
मेरे अच्छे कर्मों में उनको भी किया शामिल,
दान ,धर्मों के कामों से बड़ा पुन्य कमाया है,
बड़े सुख चैन से ही आखरी वक़्त आया है,
सोचता हूँ मिलेगा क्या? स्वर्ग या नरक!
दोनों में भला करूँगा कैसे मै फर्क,
कई पंडित बुलवाए,बड़े कई शास्त्र मंगवाए,
मगर उत्तर बड़ा मुश्किल खुदबखुद ही समझ पाए।
स्वर्ग और नरक है अपने ही कर्मों ने बनाया,
सुख चैन से जीवन जिया तो क्या जन्नत को पाया,
तेरी एक बात से ख़ुशी गर किसी को मिल जाए,
कोई हरकत भी तेरी दिल किसी का न दुखाए,
तेरे पैसे से भला दो-चार भी उठालें,
तेरे कारन कभी गिरते कोई खुद को संभालें,
तो ये मान लेना मिट गए सारे फर्क,
जो किसी का नरक तेरे से बनजाएगा स्वर्ग,
अब अपनी जन्नत से किसी की दुनिया सजाऊंगा,
जन्नतें अपनी जैसी सारी दुनिया में बसाऊंगा,
मिटा दूंगा चिंताएं पैदा जो करती हैं ये तर्क,
स्वर्ग क्या है,और होता क्या है नरक।
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