Tere Diwane
तेरे दीवाने
आज हर गली में, हर मोड़ पर मैख़ाने हैं,
अब इस शहर में बढ रहे तेरे दीवाने हैं।
थोड़ा परदे का एहतराम करो,
इस तरह क़त्ल न सरे आम करो,
बे वजह बन रहे जो ये अफसाने हैं,
अब इस शहर में बढ रहे तेरे दीवाने हैं।
छज्जे पर जुल्फें जो न सुल्झाओगे,
हजारों को किसी काम पर लगाओगे,
इतने जो टूट रहे अब घराने हैं,
अब इस शहर में बढ रहे तेरे दीवाने हैं।
ये सुर्ख होंट जब नज़र आ जाते हैं,
भंवरे भी बहकने लग जाते हैं,
फूलों की जो लगने लगी दुकाने हैं,
अब इस शहर में बढ रहे तेरे दीवाने हैं।
जो आँखों से तेरी हैं मदहोश हुए,
उन्हें साकी जो न रोके तो हैं बेहोश हुए,
ख़ाली नहीं हो रहे अब जो पैमाने हैं,
इस शहर में बढ रहे तेरे दीवाने हैं।
अब अपने दीवानों पे करदो ये रहम,
के किसी एक को बनालो तुम सनम,
तड़प-तड़प के जो रोज़ मर रहें हैं,
एक बार ही बस सहलेंगे सितम।
छोड़ दो फुर्सत में जो तुम्हे अब जाल फेलाने हैं,
अब इस शहर में बढ रहे तेरे दीवाने हैं।
Comments
Post a Comment